तिरुवनंतपुरम। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पिछला जन्म भगवान कृष्ण के यादव वंश में हुआ, जो स्पष्ट रूप से हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की अवधारणा को प्रतिबिंबित करता है, यानी की पीएम मोदी पिछले जन्म में यादव थे। केरल में स्थित दुनिया के सबसे अमीर ‘श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर’ के सर्वोच्च आध्यात्मिक अधिकारी पुष्पांजलि स्वामीयार ने यह कहा है। उनका यह बयान पीएम मोदी के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें भगवान ने पृथ्वी पर भेजा है और वह जो भी करेंगे, उसमें भगवान उनका मार्गदर्शन करेंगे।
पूरणमिकवु मंदिर पर हाल ही में जारी कॉफी टेबल बुक में पुष्पांजलि स्वामीयार ने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने आज हमारे देश को दुनिया के शीर्ष पर पहुंचाया है, और गृह मंत्री अमित शाह, जो राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं, सभी पूर्व जन्म में भगवान कृष्ण के यादव वंशज थे। त्रावणकोर रियासत के वास्तविक धार्मिक प्रमुख माने जाने वाले पुष्पांजलि स्वामीयार ने तीन महीने पहले प्रकाशित पुस्तक में कहा है, “यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि यादव वंश के शासक राष्ट्र के लिए बहुत गौरव और समृद्धि लाते हैं।”
उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी ने 14 मई को वाराणसी में समाचार चैनल से कहा था कि जब उनकी मां जीवित थीं, तो वह सोचते थे कि उनका जन्म जैविक रूप से हुआ है। अपनी मां के निधन के बाद अपने सभी अनुभवों पर विचार करने पर विश्वास हो गया कि उन्हें भगवान ने भेजा है। पीएम मोदी ने कहा था कि उनकी ऊर्जा उनके जैविक शरीर से नहीं, बल्कि ईश्वर ने उन्हें प्रदान की गई है। उन्होंने कहा कि भगवान ने उन्हें क्षमता, शक्ति, पवित्र हृदय और अच्छे इरादों की प्रेरणा दी है। वह एक साधन के अलावा और कुछ नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि भगवान उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं।
पुष्पांजलि स्वामीयार ने अपनी पुस्तक में लिखा, “जब गुजरात में भगवान श्रीकृष्ण की द्वारिका समुद्र में डूब गई, तो कई यादव वहां से भाग गए। द्वारका से पलायन करने वाले यादवों ने बाद में तिरुवनंतपुरम के विझिंजम में स्थित अयी राजवंश की स्थापना की।” पुस्तक में लिखा है कि अयी राजाओं ने आठवीं और 10वीं शताब्दी के बीच दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। विझिंजम अयी साम्राज्य की प्रशासनिक राजधानी थी, जो एक भारतीय यादव या अयार शासक वंश था। ऐसा माना जाता है कि अयी साम्राज्य ने एक शैक्षिणिक केंद्र स्थापित किया था, जिसे कंथलूर सलाई के नाम से जाना जाता था, जो नौवीं और 10वीं शताब्दी के बीच अस्तित्व में आया था।