मुंबई। महाराष्ट्र के ठाणे जिला के बदलापुर में स्कूल में यौन शोषण का शिकार हुई दो बच्चियों के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्कूल प्रशासन से लेकर पुलिस अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा कि कैसी स्थिति आ गई है लोगों को पुलिस के एक्शन के लिए सडक़ पर उतरना पड़ रहा है। सुनवाई करते हुए जज ने कहा कि यदि स्कूल भी सुरक्षित नहीं हैं, तो बच्चियां कहां जाएंगी? बच्चियों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। अदालत ने एफआईआर देरी में दर्ज करने के लिए पुलिस से जवाब मांगा। साथ ही हैरानी जताई कि दूसरी पीडि़ता से अभी तक बयान क्यों नहीं लिया गया। अदालत ने अफसोस जताते हुए कहा कि पुलिस इस संगीन मामले को इतने हल्के में कैसे ले सकती है? बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को बदलापुर में अपने स्कूल में दो नाबालिग लड़कियों पर यौन उत्पीडऩ को ‘बेहद चौंकाने वाला’ बताया और कहा कि लड़कियों की सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने कहा कि घटना की जानकारी होने के बावजूद रिपोर्ट नहीं करने के लिए स्कूल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
इसने एफआईआर दर्ज करने में देरी को लेकर भी पुलिस की आलोचना की। अदालत के दस्तावेजों के अनुसार, मामले में एफआईआर 16 अगस्त को दर्ज की गई थी और आरोपी को 17 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। पीठ ने कहा कि पुलिस मशीनरी तब तक नहीं जागी, जब तक जनता विरोध और आक्रोश के साथ सडक़ों पर नहीं उतरी। अदालत ने पूछा कि जब तक जनता में जोरदार आक्रोश नहीं होगा, मशीनरी आगे नहीं बढ़ेगी। क्या राज्य इस तरह सार्वजनिक आक्रोश फूटने तक आगे नहीं बढ़ेगा? यदि स्कूल भी सुरक्षित नहीं होंगे, तो बच्चियां कहां जाएंगी? पीठ ने कहा कि यह जानकर हैरानी हुई कि बदलापुर पुलिस ने मामले की ठीक से जांच नहीं की। अदालत ने सवाल किया कि ऐसे गंभीर मामले जहां तीन और चार साल की लड़कियों का यौन उत्पीडऩ किया गया है…पुलिस इसे इतने हल्के में कैसे ले सकती है। जज ने कहा कि यदि स्कूल सुरक्षित स्थान नहीं हैं तो एक बच्चे को क्या करना चाहिए? तीन और चार साल के बच्चे ने क्या किया? यह बिलकुल चौंकाने वाला है। अदालत ने कहा कि पहली बात, पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी। स्कूल अधिकारी चुप थे।