नई दिल्ली। वैवाहिक बलात्कार के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके लिए अन्य ‘दंडात्मक उपाय’ पहले से ही मौजूद हैं। केंद्र ने अपने हलफनामे में ये भी कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। केंद्र ने कहा है कि यह मामला कानूनी से ज्यादा सामाजिक है। इसका समाज पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि विवाह के भीतर बलात्कार के कठोर दंड प्रावधानों को लागू करने से विवाह नाम की संस्थाओं पर गंभीर सामाजिक-कानूनी प्रभाव पड़ सकते हैं। हालांकि, सरकार ने स्वीकार किया कि किसी भी पति के पास अपनी पत्नी की सहमति का उल्लंघन करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। इसके साथ ही सरकार ने यह भी कहा कि अगर अजनबियों से जुड़े बलात्कार के दंड प्रावधान और कानून को पति के खिलाफ लागू किया जाता है, तो इन कानूनों का इस्तेमाल वैवाहिक और सामाजिक ढांचे को बर्बाद कर सकता है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि संसद ने वर्तमान मुद्दे पर सभी पक्षों की राय से अवगत होने और अवगत होने के बाद वर्ष 2013 में उक्त धारा में संशोधन करते हुए आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को बरकरार रखने का निर्णय लिया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि संवैधानिक वैधता के आधार पर आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को रद्द करने से विवाह संस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि इससे वैवाहिक रिश्ते पर गंभीर असर पड़ सकता है और विवाह संस्था में गंभीर गड़बड़ी हो सकती है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि तेजी से बढ़ते और लगातार बदलते सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में, संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग से भी इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होगा कि सहमति थी या नहीं।