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एल-70 गन, जेडयू-23 मिमी, शिल्का सिस्टम रहे गुरुवार रात के हीरो, पाकिस्तानी ड्रोन किए हवा में नेस्तानाबूद

चुन-चुनकर पाकिस्तानी ड्रोन किए हवा में नेस्तानाबू

भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान बौखालहट में आ गया है। गुरुवार को कायर पाकिस्तान ने भारतीय नागरिक ठिकानों पर हमले की कोशिश की, मगर भारतीय सेना ने उसके नाकाब मंसूबों पर पानी फेर दिया। भारतीय सेना के आकाश, एमआरएसएएम, जेडयू-23, एल-70, और शिल्का जैसी उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये प्रणालियां भारत की वायु रक्षा रणनीति का अभिन्न हिस्सा हैं। दुश्मन के हवाई खतरों को नष्ट करने में सक्षम हैं। 7-8 मई, 2025 की रात को पाकिस्तान ने श्रीनगर, जम्मू, पठानकोट, अमृतसर, चंडीगढ़, और अन्य 15 शहरों में भारतीय सैन्य ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल हमले करने की कोशिश की।

यह हमला, 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे, के जवाब में भारत द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद हुआ। ऑपरेशन सिंदूर-1 में भारत ने पाकिस्तान और पीओके में नौ आतंकी ठिकानों को नष्ट किया था। पाकिस्तान के हमले को भारत की एकीकृत काउंटर-यूएएस ग्रिड और वायु रक्षा प्रणालियों, जैसे आकाश, एमआरएसएएम, जेडयू-23, एल-70, और शिल्का ने निष्प्रभावी कर दिया। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इन प्रणालियों ने पाकिस्तानी ड्रोनों और मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया, जिससे भारत को कोई नुकसान नहीं हुआ।

आकाश मिसाइल प्रणाल

आकाश भारत द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित एक मध्यम दूरी की सतह-से-हवा मिसाइल प्रणाली है, जिसे डीआरडीओ ने डिजाइन किया है। यह भारतीय सेना और वायुसेना की रीढ़ है।

विशेषताएं : रेंज:25-30 किलोमीटर

लक्ष्य : फाइटर जेट्स, ड्रोन क्रूज मिसाइलें

ऊंचाई : 18 किलोमीटर तक

मार्गदर्शन प्रणाली : राडार-आधारित कमांड गाइडेंस

सटीकत : 90 फीसदी से अधिक

तैनाती : मोबाइल लॉन्चर, जो इसे लचीलापन प्रदान करता है

योगदान : आकाश मिसाइल प्रणाली ने श्रीनगर की ओर बढ़ रहे एक पाकिस्तानी एफ-17 जेट को नष्ट किया। इस प्रणाली ने ड्रोनों और मिसाइलों को ट्रैक और नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

एमआरएसएएम

एमआरएसएएम (मध्यम दूरी की सतह-से-हवा मिसाइल) भारत और इजरायल के संयुक्त सहयोग से विकसित एक उन्नत वायु रक्षा प्रणाली है। यह बराक-8 मिसाइल का हिस्सा है और भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना में तैनात है।

विशेषताएं : रेंज : 70-100 किलोमीटर

लक्ष्य : फाइटर जेट्स, ड्रोन, बैलिस्टिक मिसाइलें, क्रूज मिसाइलें

ऊंचाई : 20 किलोमीटर तक

मार्गदर्शन प्रणाली : एक्टिव रडार होमिंग और मल्टी-फंक्शन राडार

सटीकता : उच्च सटीकता के साथ मल्टी-टारगेट ट्रैकिंग

तैनाती : मोबाइल और नौसैनिक प्लेटफॉर्म

योगदान : एमआरएसएएम ने उत्तरी और पश्चिमी भारत में पाकिस्तानी ड्रोनों और मिसाइलों को नष्ट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसकी लंबी रेंज और मल्टी-टारगेट ट्रैकिंग ने इसे प्रभावी बनाया।

 

जेडयू-23-2

जेडयू -23-2 एक सोवियत-निर्मित ट्विन-बैरल 23 मिमी ऑटोमैटिक एंटी-एयरक्राफ्ट गन है, जिसे भारतीय सेना और वायुसेना में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

विशेषताए : रेंज : 2.5 किलोमीटर

लक्ष्य : निम्न-उड़ान वाले ड्रोन, हेलिकॉप्टर और विमान

गति : 970 मीटर/सेकंड

मार्गदर्शन प्रणाली : ऑप्टिकल साइट और राडार-आधारित ट्रैकिंग

तैनाती : मोबाइल और स्थिर दोनों

योगदान : जेडयू-23-2 ने उधमपुर और अन्य क्षेत्रों में निम्न-उड़ान वाले पाकिस्तानी ड्रोनों को नष्ट किया। इसकी तेजी से फायरिंग और गतिशीलता ने इसे प्रभावी बनाया।

 

एल-70

एल-70 एक स्वीडिश-निर्मित 40 मिमी एंटी-एयरक्राफ्ट गन है, जिसे भारत ने अपग्रेड किया है। यह भारतीय सेना और वायुसेना की निम्न-ऊंचाई वाली रक्षा का हिस्सा है।

विशेषताएं : रेंज : चार किलोमीटर

लक्ष्य : ड्रोन, हेलिकॉप्टर, और निम्न-उड़ान वाले विमान

गति : 300 राउंड प्रति मिनट

मार्गदर्शन प्रणाली : राडार-आधारित फायर कंट्रोल सिस्टम

तैनाती : स्थिर और मोबाइल दोनों

योगदान : एल-70 ने पाकिस्तानी ड्रोनों को नष्ट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से पंजाब और जम्मू-कश्मीर क्षेत्रों में। इसकी सटीकता और तेजी से फायरिंग ने इसे प्रभावी बनाया।

 

शिल्का (जेडएसयू-23-4)

शिल्का एक सोवियत-निर्मित स्व-चालित एंटी-एयरक्राफ्ट गन है, जिसमें चार 23 मिमी तोपें होती हैं। यह भारतीय सेना की निम्न-ऊंचाई वाली रक्षा का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

विशेषताएं : रेंज : 2.5 किलोमीटर तक

लक्ष्य : ड्रोन, हेलिकॉप्टर, और निम्न-उड़ान वाले विमान

गति : 4000 राउंड प्रति मिनट

मार्गदर्शन प्रणाली : राडार और ऑप्टिकल ट्रैकिंग

तैनाती : बख्तरबंद वाहन पर स्व-चालित

योगदान : शिल्का की उच्च फायरिंग दर ने उदमपुर और अन्य क्षेत्रों में पाकिस्तानी ड्रोनों को नष्ट करने में मदद की। इसकी गतिशीलता और राडार-आधारित ट्रैकिंग ने इसे युद्धक्षेत्र में प्रभावी बनाया।

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