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अदभुत नजारा : 1.2 किमी व्यास वाला धूमकेतु धरती के सबसे नजदीक से गुजरेगा , 21 अक्तूबर को आसमान में देखने को मिलेगा नजारा

यह मौका आपके जीवन में तो क्या आपकी आने वाली 100 पीढिय़ों तक के जीवन में नहीं आएगा, क्योंकि ऐसा शानदार और अद्भुत अवसर 15 हजार साल बाद आता है। 21 अक्तूबर को आसमान में ऐसा नजारा देखने को मिलेगा, जिसे आपने नहीं देखा, तो पछताना पड़ेगा। यह एक ऐसा नजारा होगा, जिसे पूरी दुनिया देखती रह जाएगी। यह नजारा सौरमंडल की सबसे रहस्यमय जगह ऑर्ट क्लाउड से आने वाले लेमन नॉम कॉमेट से होगा। यह कॉमेट 21 अक्तूबर को धरती के सबसे नजदीक से गुजरेगा।

जैसे-जैसे यह सूर्य और पृथ्वी के पास आएगा, धूमकेतु की सतह गर्म होगी, जिससे चमकती हुई गैस और धूल निकलेगी, जो एक चमकदार पूंछ का रूप ले लेगी, जिसे कई हफ़्तों तक नंगी आंखों से देखा जा सकेगा। यानी 21 अक्तूबर से आठ नवंबर तक इसे देखा जा सकता है। खगोलविदों का अनुमान है कि यह अधिकांश तारों को पीछे छोड़ देगा और दुनिया भर में रात के समय आसमान में अदभुत नजारा पेश करेगा। धरती के इतने पास से गुजरना अत्यंत दुर्लभ है और कई लोगों के लिए यह मानव इतिहास में एक बार होने वाला दृश्य होगा, क्योंकि इसके बाद यह नजारा 15 हजार साल बाद देखने को मिलेगा। यह किसी अजूबे से कम नहीं होगा। हालांकि इससे पहले भी ब्रह्मांड में कई तरह के ऐसे शानदार नजारे हुए होंगे, लेकिन वह इतिहास के पन्नों में ही दर्ज हैं। अब मौका है इस नजारे के साक्षात दर्शन करने का।

यह कोई साधारण कॉमेट नहीं है, बल्कि सौरमंडल की सबसे रहस्यमय जगह ऑर्ट क्लाउड से निकला है। ऑर्ट क्लाउड एक ऐसी जगह है, जहां अरबों-खरबों साल से हजारों कॉमेट छिपे हुए हैं। कभी-कभी सूर्य की ग्र्रैविटी इन कॉमेट को अपनी ओर खींच लेती है, तो यह बाहर आ जाते हैं और हजारों साल तक घूमते-घूमते यह आसमान में दिखाई देने लगते हैं। लेमन कॉमेट भी उन्हीं में से एक है, जो 15,000 साल का चक्कर लगाने के बाद पृथ्वी के बेहद करीब से गुजरेगा।

भारत में यह नजारा नॉर्थ-ईस्ट डायरेक्शन में 21 अक्तूबर को देखा जा सकेगा। लेमन कॉमेट उत्तर-पूर्व दिशा में सूरज ढलने के 2 घंटे बाद आसमान में दिखेगा। यह एक दुर्लभ नजारा होगा, जिसे आपने नहीं देखा, तो जीवन का एक बड़ा पल खो देंगे, जो लौटकर 15 हजार साल बाद तो आएगा, पर उस वक्त आप जिंदा नहीं होंगे। लगभग 1.2 किमी व्यास वाला यह कॉमेट 15,000 वर्षों से हमारे आकाश में नहीं आया है, जिससे इसकी वापसी वास्तव में एक ऐतिहासिक खगोलीय मुलाकात है।

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