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क्या ‘आधार’ रखने वाले घुसपैठियों को वोट देने का हक मिलना चाहिए? : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता पर एक अहम सुनवाई के दौरान गुरूवार को पूछा, “क्या ऐसे लोग जो गैर-कानूनी तरीके से भारत में आए हैं, लेकिन जिनके पास कल्याणकारी योजनाओें के लाभों को लेने के लिए आधार कार्ड हैं, उन्हें भी वोट देने का हक होना चाहिए?” मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की एक पीठ ने एसआईआर को चुनौती देने वाली अलग-अलग राज्यों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। यह बात पश्चिम बंगाल और केरल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के इस तर्क के बाद आई कि आधार कार्ड होने के बावजूद मतदाताओं को बाहर रखा जा रहा है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि आधार का मकसद इसे बनाने वाले कानून के तहत योजनाओें का लाभ पाने तक ही सीमित है। उन्होंने पूछा “मान लीजिए कि पड़ोसी देशों से लोग यहां आते हैं और यहां रिक्शा चलाने या मज़दूरी करने लगते हैं। अगर आप आधार कार्ड इसलिए जारी करते हैं ताकि उन्हें सब्सिडी वाला राशन मिल सके, तो यह हमारे संवैधानिक मूल्यों के हिसाब से है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि क्योंकि उन्हें यह फ़ायदा दिया गया है, तो अब उन्हें वोटर भी बना देना चाहिए?”

बिहार में मतदाता सूची से नाम हटाने को लेकर जताई गई चिंताओं पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि बड़े पैमाने पर मीडिया कवरेज ने एसआईआर प्रक्रिया को पूरे राज्य में मशहूर कर दिया है। “कभी-कभी हमें मीडिया को पूरा क्रेडिट देना चाहिए। अगर दूर-दराज़ के इलाकों के लोगों को जानकारी थी कि नई लिस्ट आ रही है, तो क्या कोई कह सकता है कि उन्हें पता नहीं था?”

अधिवक्ता सिब्बल की इस बात पर कि एसआईआर प्रक्रिया का बोझ मतदाताओं पर नहीं पड़ना चाहिए, और सॉफ्टवेयर फर्जी मतदाताओं का असरदार तरीके से पता लगा सकता है, न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि तकनीकी उपकरण मृत मतदाताओं की पहचान नहीं कर सकते। “यह सब राजनीतिक रुझान पर निर्भर करता है। अगर पार्टी ‘अ’ मज़बूत है, तो सभी मृत मतदाता उसी पार्टी को वोट देंगे। इसीलिए मृत मतदाताओं को हटाना होगा,”।

बूथ स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) की गलतियों के बारे में चिंता जताते हुए, न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि सर्वे शायद ही कभी पूर्ण होते हैं और इसलिए सुधार के लिए मसौदा सूची प्रकाशित की जाती हैं। पीठ ने दोहराया कि सूची से हटाये गये और बाहर चले गये मतदाताओं की सूची न केवल ऑनलाइन बल्कि पंचायतों और स्थानीय निकायों में भी अपलोड की जानी चाहिए।

पीठ ने पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में एसआईआर प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चुनाव आयोग से भी जवाब मांगा। इसने कहा कि अगर ज़रूरत पड़ी, तो न्यायालय मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन की समयसीमा बढ़ा सकता है। एसआईआर के दूसरे चरण के कार्यक्रम के अनुसार, गणना फॉर्म 4 दिसंबर को जमा करने हैं, और मसौदा सूची 9 दिसंबर को प्रकाशित की जाएगी।

न्यायमर्ति सूर्यकांत ने ज़ोर देकर कहा, “अगर आप कोई केस बनाते हैं, तो न्यायालय हमेशा तारीखें बढ़ाने का निर्देश दे सकता है।” इन्हें टालने का विरोध करते हुए चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि 99 प्रतिशत मतदाताओं को को गणना प्रपत्र मिल गए हैं और 50 प्रतिशत से ज़्यादा डिजिटाइज़ हो गए हैं।

उन्होंने कहा कि राज्य चुनाव कार्यालय और चुनाव आयोग बेहतर तरीक से समन्वय कर रहे थे और उन्हें संचालनात्मक दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा। केरल में 9 और 11 दिसंबर को होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव की अर्ज़ी को देखते हुए न्यायालय केरल की याचिका पर 2 दिसंबर को सुनवाई के लिए सहमत हो गया। तमिलनाडु मामले पर चार दिसंबर और पश्चिम बंगाल मामले पर नौ दिसंबर को सुनवाई होगी।

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