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दिल्ली में भूजल प्रदूषण: यूरेनियम, सीसा और नाइट्रेट का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंचा

नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के अलावा अब भूजल में बढ़ते यूरेनियम स्तर ने दिल्लीवासियों के माथे पर गंभीर स्वास्थ्य चिंता की लकीर खींच दी है। दिल्ली का भूजल एक गंभीर स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है, जहां भारी धातुओं का प्रदूषण देश में सबसे अधिक दर्ज किया गया है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की हालिया वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार राजधानी के भूजल में यूरेनियम, सीसा, नाइट्रेट, फ्लोराइड और लवणता से जुड़े मानक खतरनाक स्तर पर पाए गए हैं, जिससे बोरवेल और हैंड पंप के पानी पर निर्भर लोगों के स्वास्थ्य के लिए यह गंभीर जोखिम हो सकता है।

यूरेनियम स्वाभाविक रूप से पाया जाने वाला एक रेडियोधर्मी तत्व है। जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत जारी केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट 2025 में बताया गया है कि एकत्र किए गए कुल नमूनों में से 13 से 15 प्रतिशत में यूरेनियम संदूषण पाया गया। यह रिपोर्ट 2024 में देशभर से एकत्र किए गए लगभग 15,000 नमूनों पर आधारित है।

रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दिल्ली के 86 निगरानी स्थलों में लिए गए कई नमूनों में विभिन्न मानक भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की पेयजल सीमा से अधिक पाए गए। वर्ष 2024 में भूजल गुणवत्ता के नमूने 5,368 चयनित ट्रेंड स्टेशनों से मानसून से पहले और मानसून के बाद के मौसम में एकत्र किए गए, ताकि मौसमी पुनर्भरण का भूजल गुणवत्ता पर प्रभाव आंका जा सके। नमूना संग्रहण और विश्लेषण के लिए एपीएचए 2012 (स्टैंडर्ड मेथड्स फॉर द एग्ज़ामिनेशन ऑफ़ वाटर एंड वेस्ट वॉटर, अमेरिकन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन) में दिए गए मानक तरीकों का उपयोग किया गया।

 

इस रिपोर्ट का उद्देश्य पेयजल और कृषि उपयोग हेतु भूजल में अकार्बनिक जल गुणवत्ता मानकों के व्यापक परीक्षण करना है। देशभर में भूजल गुणवत्ता में बहुत अंतर पाया गया। अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में शत-प्रतिशत नमूने बीआईएस मानकों पर खरे उतरे हैं। इसके विपरीत राजस्थान, हरियाणा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में व्यापक प्रदूषण पाया गया। दिलचस्प बात यह है कि मानसून के दौरान पानी की गुणवत्ता में कुछ सुधार देखा गया, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ विद्युत चालकता (ईसी) और फ्लोराइड उच्च था। मानसून के बाद कुछ क्षेत्रों में ईसी और फ्लोराइड स्तर में मामूली कमी दर्ज की गई, जिससे स्पष्ट होता है कि मानसूनी पुनर्भरण लवणों के घुलनशील होने के कारण जल गुणवत्ता में अस्थायी सुधार ला सकता है।

मानकों के अनुसार 30 पीपीबी की अधिकतम अनुमेय मात्रा से अधिक यूरेनियम घनत्व वाला पानी पीने के लिए सुरक्षित नहीं माना जाता, क्योंकि इसका निरंतर सेवन आंतरिक अंगों को क्षति पहुंचा सकता है। पीने के पानी में बढ़ा हुआ यूरेनियम स्तर कई महामारी-विज्ञान अध्ययनों में मूत्र मार्ग कैंसर और गुर्दे की विषाक्तता से जुड़ा पाया गया है।

एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि पीने के पानी में यूरेनियम के स्तर और हड्डियों में यूरेनियम की मात्रा के बीच मजबूत संबंध है, जिससे संकेत मिलता है कि हड्डियां यूरेनियम के सेवन का अच्छा संकेतक हो सकती हैं। ऐसे अध्ययन यह स्पष्ट करते हैं कि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर यूरेनियम के हानिकारक प्रभावों का और मूल्यांकन जरूरी है, विशेषकर उन देशों में जहाँ पेयजल में यूरेनियम का स्तर अधिक पाया गया है।

भूजल में उच्च यूरेनियम स्तर स्थानीय भूगर्भीय संरचना, मानवजनित गतिविधियों, शहरीकरण और कृषि में बड़े पैमाने पर फॉस्फेट खाद के उपयोग के कारण हो सकता है। अध्ययनों में पाया गया है कि फॉस्फेट उर्वरकों में एक मिलीग्राम प्रति किलोग्राम से 68.5 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम तक यूरेनियम हो सकता है। इस प्रकार, फॉस्फेट चट्टानों से बने उर्वरक कृषि इलाकों में भूजल में यूरेनियम बढ़ा सकते हैं।

यूरेनियम संदूषण के लिए कई रोकथाम उपाय उपलब्ध हैं। इसमें अवशोषण, कोएगुलेशन, एक्सट्रैक्शन, रिवर्स ऑस्मोसिस और वाष्पीकरण जैसी उपचार तकनीकें शामिल हैं। सही तकनीक का चयन लागत, दक्षता और स्थानीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है। कई मामलों में संयुक्त या आवश्यकता-आधारित तकनीकों का उपयोग सबसे प्रभावी पाया गया है।

लौह और मैंगनीज़ को नियंत्रित करने के लिए एरेशन, निस्पंदन, लौह अथवा मैंगनीज़ निष्कासन संयंत्रों का उपयोग और रासायनिक ऑक्सीकरण शामिल हैं। छोटे स्तर या घरेलू उपयोग के लिए रिवर्स ऑस्मोसिस और विशेष मीडिया फिल्टर उपयुक्त हैं। सीसा संदूषण से निपटने के लिए प्रमुख कदमों में निस्पंदन प्रणालियों (सक्रिय कार्बन, आरओ या आयन विनिमय), औद्योगिक अपशिष्ट पर कड़ी निगरानी, सार्वजनिक भवनों में सीसा परीक्षण और हाइड्रोजियोकेमिकल मैपिंग शामिल हैं।

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