
बीबीएन। चीन द्वारा एपीआई यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनगे्रडिएंट्स (सक्रिय औषधीय घटक) की कीमतों में की गई भारी और आक्रामक कटौती से भारतीय फार्मा उद्योग पर मंडरा रहे संकट के बीच केंद्र सरकार ने बड़ा और निर्णायक कदम उठाया है। पोटाशियम क्लैवुलेनेट और इससे जुड़े प्रमुख रासायनिक मध्यवर्ती पदार्थों के आयात पर अब कड़ी शर्तें लागू कर दी गई हैं। विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसारए तय न्यूनतम मूल्य से कम पर होने वाला आयात अब प्रतिबंधित श्रेणी में आएगा। यह व्यवस्था तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है और 30 नवंबर, 2026 तक प्रभावी रहेगी। यह निर्णय ऐसे समय में आया है, जब हाल ही में सामने आई रिपोर्टों में खुलासा हुआ था कि चीन ने रणनीतिक रूप से एपीआई की कीमतों में भारी गिरावट कर भारतीय उत्पादन इकाइयों को कमजोर करने की कोशिश की है। विशेष रूप से पोटाशियम क्लैवुलेनेट और पेनिसिलिन-जी जैसे अहम कच्चे माल के दाम लागत से भी नीचे ला दिए गए, जिससे देश में एपीआई आत्मनिर्भरता का सपना डगमगाने लगा था। सरकार ने भारतीय व्यापार वर्गीकरण संहिता-2022 में नई नीति शर्त जोड़ते हुए स्पष्ट किया है कि यदि पतला किया गया पोटाशियम क्लैवुलेनेट 77 अमरीकी डालर प्रति किलोग्राम से कम मूल्य पर आयात किया जाता है, तो वह प्रतिबंधित माना जाएगा। इसी प्रकार पोटाशियम क्लैवुलेनेट का आयात भी 180 अमरीकी डालर प्रति किलोग्राम से कम मूल्य पर प्रतिबंधित रहेगा। इसी तरह की पाबंदियां अन्य एपीआई पर भी लागू की गई हैं।
यह फैसला उस पृष्ठभूमि में आया है, जब उद्योग जगत लगातार चेतावनी दे रहा था कि चीन द्वारा कीमत करने की नीति सामान्य प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि सुनियोजित मूल्य हत्या रणनीति है। हाल ही में यह सामने आया था कि पोटाशियम क्लैवुलेनेट की कीमतें जहां पहले 19 से 20 हजार रुपए प्रति किलोग्राम थीं, वे अचानक गिरकर 13 से 13.5 हजार रुपए तक पहुंच गईं। इसी तरह पेनिसिलिन-जी के दाम 1900 रुपए प्रति किलोग्राम से घटकर 950 रुपए तक आ गए थे। इस कीमत युद्ध का सीधा असर केंद्र सरकार की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना पर पड़ा। हिमाचल प्रदेश के प्लासड़ा क्षेत्र में स्थापित देश की पहली बड़ी फर्मेंटेशन इकाई सहित तेलंगाना और गुजरात की कई परियोजनाएं संकट में आ गई थीं। उद्योग जगत का कहना था कि यदि सरकार ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया, तो हजारों करोड़ रुपए के निवेश और एपीआई आत्मनिर्भरता की पूरी रणनीति धराशायी हो सकती है। अब न्यूनतम आयात मूल्य तय कर सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि आत्मनिर्भर भारत की फार्मा रणनीति से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उद्योग जगत इस फैसले को लंबे समय से की जा रही मांगों की दिशा में एक ठोस शुरुआत मान रहा है। जानकारों के अनुसार आने वाले समय में अन्य महत्त्वपूर्ण एपीआई पर भी इसी तरह के सुरक्षात्मक कदम उठाए जा सकते हैं, ताकि भारतीय फार्मा उद्योग को वैश्विक साजिशों से सुरक्षित रखा जा सके।







