नई दिल्ली। सरकार से सबसिडी पर जमीन हासिल करके बनने वाले निजी अस्पतालों पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि ये अस्पताल सबसिडी पर जमीन लेकर इमारत बना लेते हैं, लेकिन फिर गरीब तबके के लिए बेड रिजर्व करने के वादे पर अमल नहीं करते। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रसन्ना बी. वाराले ने नेत्र रोगों के इलाज के लिए पूरे देश में एक समान दर तय किए जाने को चुनौती देने वाली अर्जी पर यह बात कही। अदालत ने कहा कि इन सभी निजी अस्पतालों को जब सबसिडी पर जमीन लेनी होती है तो कहते हैं कि हम कम से कम 25 फीसदी बेड गरीबों के लिए रिजर्व रखेंगे, लेकिन ऐसा कभी होता नहीं। ऐसा हमने कई बार देखा है। दरअसल सरकार ने नेत्र रोगों के इलाज के लिए पूरे देश में एक समान दर तय करने का फैसला लिया है। ऑल इंडिया ऑप्थैलमोलॉजिकल सोसायटी की ओर से अदालत में याचिका दाखिल की गई है, जिसमें कहा गया है कि स्पेशलिस्ट्स के रेट एक समान नहीं हो सकते।
सोसायटी ने कहा कि मेट्रो सिटीज और सुदूर गांवों में एक ही रेट नहीं हो सकता। सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और एडवोकेट बी. विजयलक्ष्मी ने सोसायटी का पक्ष रखते हुए कहा कि सरकार का यह फैसला ठीक नहीं है। फीस में हर जगह एकरूपता ठीक नहीं है। अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार की राय लेने के लिए नोटिस जारी किया है और अगली सुनवाई के लिए 17 अप्रैल की तारीख तय की है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले का व्यापक असर होगा। जस्टिस धूलिया ने कहा कि आखिर आप कैसे इस पॉलिसी को चैलेंज कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर पूर्वोत्तर में स्वास्थ्य सेवाओं की दरें कम हैं और यदि इस नियम को खत्म किया गया तो फिर इस पर असर होगा। गौरतलब है कि देश में निजी अस्पतालों की महंगी फीस और सेवाओं पर पहले भी लोग चिंताएं जताते रहे हैं। ऐसे में शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी अहम और महंगी स्वास्थ्य सेवाओं को आईना दिखाने वाली है।