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उत्पीडऩ को ही आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं मान सकते, अतुल सुभाष सुसाइड केस के बीच SC की टिप्पणी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में दोषी ठहराने के लिए केवल उत्पीडऩ पर्याप्त नहीं है, बल्कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने के स्पष्ट सबूत होने चाहिए। अतुल सुभाष सुसाइड केस के बीच सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी अहम मानी जा रही है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने यह टिप्पणी गुजरात हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर अपना फैसला सुनाते हुए की, जिसमें एक महिला को कथित रूप से परेशान करने और उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने के लिए उसके पति और उसके दो ससुराल वालों को आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया गया था।

अतुल सुभाष की आत्महत्या के मामले के मद्देनजर, इस फैसले में की गई न्यायालय की टिप्पणियां महत्वपूर्ण हैं। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि धारा 306 के तहत दोषसिद्धि के लिए यह एक सुस्थापित कानूनी सिद्धांत है कि कार्य को उकसाने का इरादा स्पष्ट होना चाहिए। केवल उत्पीडऩ किसी आरोपी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। साथ ही पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष को अभियुक्त द्वारा की गई सक्रिय या प्रत्यक्ष कार्रवाई के बारे में बताना चाहिए जिसके कारण एक व्यक्ति ने अपनी जान ले ली। पीठ ने कहा कि कार्य को उकसाने के इरादे का केवल अनुमान नहीं लगाया जा सकता और यह साफ तौर पर तथा स्पष्ट रूप से पहचाने जाने योग्य होना चाहिए। पीठ ने कहा कि इसके बिना, कानून के तहत उकसावे को स्थापित करने की मूलभूत आवश्यकता पूरी नहीं होती है, जो आत्महत्या के कृत्य को भडक़ाने या इसमें योगदान देने के लिए जानबूझकर और स्पष्ट इरादे की आवश्यकता को रेखांकित करता है। पीठ ने धारा 306 के तहत लगाए गए आरोप से तीन लोगों को मुक्त कर दिया।

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