अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर परिचर्चा : महिला दिवस की आवश्यकता क्यों?

प्रस्तुति-विवेक कुमार
महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य केवल स्त्रियों के सामाजिक उत्थान से नहीं है बल्कि इसमें समूची नारी जाति को शामिल किया जाता है जिन्हें किन्हीं किन्ही कारणों से अपने विकास का अवसर नहीं मिला भले ही वे भेदभाव पूर्ण नीतियों के कारण पुरुषों की अपेक्षा पिछड़े रही हो अथवा उनके विकास के अवसरों में पक्षपात किया गया हो ऐसी अपेक्षित लड़कियों और महिलाओं की प्रगति से ही सामाजिक उन्नति संभव है। ऐसी प्रगति की पृष्ठभूमि उनके शैक्षणिक क्षेत्र को सुधार करके तैयार की जा सकती है जिससे समाज परिवार व संबद्ध इकाइयों की सशक्त भूमिका रहे प्रगति के लिए अवसर ही उनके विकास को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं। महानगरी व अति विकसित शहरों की तुलना में देश के अन्य भागों में महिलाओं का अधिक विकास नहीं हो सका है।
इन्हीं सब बातों को लेकर जब कुछ महिलाओं के विचार विवेक कुमार ने जाने तो बड़े ही रोचक तथ्य उभरकर सामने आए पेश है उन्हीं की जुबानी-
1-मनोवैज्ञानिक डॉक्टर ज्योति दुबे कहती है कि वूमेन एंपावरमेंट की जरूरत हमें क्यों? क्योंकि भारत में 50% ही लीडरशिप रोल वूमेंस निभा पा रही है इसका कारण है कि हम अपनी आवाजों को अपनी बातों को लोगों तक पहुंचा ही नहीं पाते और ना ही शेयर कर पाते हैं जिसकी वजह से हम चीजों को दबा लेते हैं दबाने से प्रॉब्लम खत्म नहीं होती बल्कि और बढ़ती है आज स्वतंत्र होना ही सिर्फ काफी नहीं है बल्कि एंपावरमेंट भी जरूरी है हमें सशक्त होना बेहद जरूरी है क्योंकि हम अगर सशक्त फील करते हैं तभी हम अपने आगे की जनरेशन जैसे हमारे बच्चे उनके बारे में भी फैमिली में क्या कहना है क्या नहीं कहना है अपनी बात को रख पाएंगे ज्यादातर महिलाओं की प्रॉब्लम है कि ग्रैंड मदर ने कुछ और बोला फैमिली मेंबर्स ने कुछ और बोला अपने बच्चों के लिए क्या सही है क्या गलत है इसका निर्णय ही तभी ले पाते हैं जब हम खुद एंपावर्ड हैं निर्णय लेना अपने बारे में सोचना अपने बारे में जागरूक होना अपनी इवॉल्विंग मेंटल फिटनेस अपनी फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस का ध्यान रखना यह कई पहलू है वुमन एंपावरमेंट के। इसके लिए हम कह सकते हैं कि जो अवरोध पैदा होता है वह हमारे सोसाइटी में जेंडर डिफरेंशियल स्टीरियोटाइप के कारण भी होता है इसलिए आज के दौर में वूमेंस का पावर होने बहुत ही जरूरी पहलू बन चुका है फीमेल अपने इन साइकोलॉजिकल स्ट्रक्चर के जो फायदे हैं उनका सदुपयोग कर ही नहीं पाते हैं क्योंकि वह कहीं ना कहीं आज भी डोमेस्टिक वायलेंस लीडरशिप ना ले पाना घर में मुख्य परसन न हो पाना मतलब घर का मुखिया सिर्फ मेल ही होगा ऐसा होना यह सब कारण हमें अपनी सोसाइटी में दिख रहे हैं जो कि कहीं ना कहीं महिलाओं को पीछे कर रहे हैं।
2-लखनऊ की ओम सिंह समाज सेविका एवं मनोवैज्ञानिक है उनका कहना है कि भारतवर्ष में आधी आबादी पूरा हक का नारा हर तरफ गूजता है लेकिन यह पूरा हक तब तक मिलना मुश्किल है जब तक की सभी महिलाएं आत्मनिर्भर ना हो जाए। सिर्फ उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेने से ही काम नहीं चलेगा महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता सुरक्षा व्यक्तिगत निर्णय लेने की स्वतंत्रता विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। सार्वजनिक परिवहन से यात्रा करते समय महिलाएं सुरक्षित महसूस करें ऐसे समाज के ढांचे और मानसिकता की जरूरत है। कुल मिलाकर महिला सशक्तिकरण की बात तो हम कर रहे हैं परंतु समाज में घरों में स्त्रियों की स्थिति बेहद संवेदनशील है इस दिशा में बहुत प्रयास की आवश्यकता है फिर भी पहले के अपेक्षा नारी की स्थिति बहुत बेहतर हुई है मुझे लगता है जिन मुद्दों पर मैंने अपनी बात कही है अगर इन सभी मुद्दों पर महिलाएं सफल हो जाए तो सही मायने में यह महिला सशक्तिकरण होगा।
- मुंबई की प्रख्यात एंकर राशि मोदी मेडिटेशन के प्रशिक्षका भी है एवं पूर्व में मुंबई आकाशवाणी की आरजेभी रही है इन्होंने विभिन्न स्तरों पर विभिन्न वर्गों की महिलाओं की वास्तविक स्थिति को करीब से देखा है एवं अनुभव किया है उक्त विषय पर इन्होंने अपना मत प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत देश में शास्त्र ऐसा दर्शन कराते हैं कि यह संसार पुष्प और प्रकृति दो अंगों से बना है चैतन्य तत्व को पुरुष या शिव कहा गया है और सदृस्य तत्व को प्रकृति या शक्ति कहा गया महिला का पर्यायवाची शब्द ही शक्ति है शक्ति के सशक्तिकरण के विषय में चर्चा करना किंचित अटपटा लग सकता है परंतु महिला के सशक्तिकरण की आवश्यकता शत प्रतिशत है एक लंबे अरसे तक एवं कई पीढियां तक महिला को यही बताया गया है कि वह सिर्फ जननी ही नहीं बल्कि पालन पोषण कर्ता भी है ब्रिटिश काल के अभिलेख भी बताते हैं कि पूर्व में भारत में महिलाओं का समान स्थान था कश्मीर से कन्याकुमारी तक अऩेको परियोजनाएं का नेतृत्व महिलाएं संभालती थी वेदों में भी स्त्रियों के ऋषि मुनि होने की पुष्टि मिलती है आध्यात्मिक स्तर पर भी हमारे देश में अर्धनारीश्वर को पूजा जाता है महिला शक्ति है यह महिला शायद भूल गई या निहित कारणो से भुला दिया गया। आवश्यकता है स्त्री और पुरुष दोनों की जरूरत शिक्षण के ज्ञानवर्धन की। इतिहास के पन्नों में बेचारी या अबला नारी की जगह रानी अबाका, जिजामाता जैसी महिला विभूतियों का उल्लेख होना चाहिए महिलाओं के वास्तविक स्तर का उल्लेख होना चाहिए और साथ में पुरुषों को भी इस विषय में सुनिश्चित किया जाना चाहिए जिस तरह पूर्व काल में महिला और पुरुष साथ मिलकर संसार चलाते थे उसी तरह आज के युग में भी जहां महिला और पुरुष दोनों कमाते हैं घर के समस्त काम और बच्चों के पालन पोषण में पुरुष की भी भागीदारी होनी चाहिए और परिवार की समस्त जिम्मेदारियां को मिलकर उठाना चाहिए समस्त समाज में इस मानः परिवर्तन के लिए महिला सशक्तिकरण की परम आवश्यकता है।
- मुंबई में कार्यरत सुश्री कविता शेट्टी वर्तमान में मूवी टोन डिजिटल एंटरटेनमेंट कंपनी के संस्थापक एवं निदेशक है वह कॉर्पोरेट स्तर पर कार्य निष्पादन का विशद अनुभव प्राप्त कर चुकी है। महिला सशक्तिकरण के विषय पर चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि भारत को स्वतंत्र रूप से 76 वर्ष हो चुके हैं लेकिन आज भी महिलाओं को शादी के बाद दहेज प्रताड़ना घरेलू हिंसा और अन्य सामाजिक कुरीतियों का सामना करना पड़ता है पुरुषों और महिलाओं दोनों के शिक्षा दर में वृद्धि हुई है फिर भी महिलाओं के प्रति अपराध कम नहीं हो रहे हैं। शादी के समय हर महिला को सामान अधिकार और सुखद भविष्य के वादे किए जाते हैं लेकिन विवाह के तुरंत बाद अनेक महिलाओं की स्थिति घर की रानी से वैधानिक नौकरानी जैसे बना दी जाती है यह समस्या इसलिए उत्पन्न होती है क्योंकि पुरुष अपने दायित्व को भूल जाते हैं समान अधिकारों के साथ समान जिम्मेदारी निभाना भी आवश्यक है लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। महिला सशक्तिकरण का सही अर्थ महिलाओं के अधिकारों और मूल आवश्यकताओं की रक्षा करना है एक महिला का सम्मान हर स्तर पर बना रहना चाहिए सच्चा सशक्तिकरण तब होगा जब महिलाएं पुरुषों से यह कहने का साहस कर सके कि पुरुषों को अपनी गलतियों के लिए स्वयं जिम्मेदार होना चाहिए। सच्चे पुरुषत्व का अर्थ शारीरिक विशेषता ही नहीं है बल्कि सच्चा पुरुष वही है जो अपने वचनों को जीवन भर निभाए बाकी सब विशेषताएं तो समय के साथ लुप्त हो जाती हैं अगर महिलाएं इस सच्चाई को समझ ले तो वह अच्छे और बुरे पुरुषों के बीच फर्क करना सीख जाएंगे सशक्तिकरणकानून से नहीं बल्कि महिला की आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान से आता है जब तक महिला अपने अधिकारों लक्षयोऔर जीवन की प्राथमिकताओं को समाज के सम्मुख स्पष्ट नहीं करेंगी तब तक वास्तविक सशक्तिकरण मात्र एक सपना बना रहेगा।
- अमीनाबाद लखनऊ की सोशल वर्कर अनामिका पाठक कहती है कि किशोरावस्था प्रत्येक मनुष्य के जीवन का ऐसा समय होता है जब उसके मस्तिष्क में सहस्त्रों प्रश्न उठ रहे होते हैं नित नई जिज्ञासाएं जन्म लेती हैं शारीरिक एवं मानसिक बदलाव आ रहे होते हैं इसलिए व्यक्ति के विकास हेतु या अत्यंत आवश्यक एवं महत्वपूर्ण समय होता है बच्चों के सहस्त्र प्रश्नों के उत्तर देने से समानता माता-पिता बचना चाहते हैं एवं बच्चों को डांट कर चुप कर देते हैं जिसके परिणाम स्वरुप बालपन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से करके उनको इस आयु में बार-बार डांटना उनके मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है एक सशक्त पुरुष का निर्माण एक सशक्त महिला ही करती है। किशोरावस्था में ही बच्चों से सेल्फ कॉन्सेप्ट का भी विकास हो रहा होता है ऐसे में अभिभावकों द्वारा बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से करते हुए बार-बार उन्हें नीचा अथवा कमतर दिखाने के फल स्वरुप उनके सेल्फ कॉन्सेप्ट का विकास प्रभावित होगा और वह अपने संपूर्ण जीवन में आत्मविश्वास के अभाव का ही अनुभव करेंगे माता-पिता को सहस्त्र यह स्वीकार करना चाहिए कि ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को अद्वितीय बनाया है और सभी की शारीरिक एवं मानसिक क्षमताएं भिन्न होती हैं प्रत्येक बच्चा स्वयं में निराला है प्रत्येक बच्चे में जिस प्रकार कुछ कमजोरी होती हैं उसी प्रकार कुछ विलक्षण क्षमताएं भी होते हैं यदि हमारे बच्चे का मन किसी एक विषय में नहीं लगता तो अवश्य ही कुछ अन्य विषयों में भी अधिक भी लगता होगा।
- कोरियोग्राफर एवं कथक एक्स्पोनेंट मंजू मलकानी का कहना है कि अभी भी भारत के कई हिस्सों में समाज में महिलाओं को उचित अधिकार प्राप्त नहीं है उन्हें पुरुषों से कमतर समझा जाता है इसलिए हमें जरूरत है महिला सशक्तिकरण की। महिला सशक्तिकरण के बिना अन्य लैंगिक पक्षपात और असमानता को दूर नहीं किया जा सकता है। महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है इसलिए भी है कि महिलाएं अपने निर्णय के लिए किसी अन्य पर निर्भर ना हो और वह अपने जीवन के विषय में खुद निर्णय ले सके ताकि स्वयं का एक मुकाम हासिल का सामाजिक के लिए कार्य करें। आज महिलाओं को जिम समस्याओं का सामना करना पड़ता है उन समस्याओं से जूझते हुए महिला स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रही है महिलाओं की यह समस्या केवल उनकी समस्या नहीं है वरुण पूरे समाज की समस्या। महिलाओं को महिलाओं की समस्याओं की जानकारी देना आवश्यक है क्योंकि यदि उनके साथ कोई गलत घटना होती है तो अपने आप को संभालसकें। उसके कृत्रिम कि उसे याद दिलाते हुए समय उसके अधिकारों का भी उसे पर्याप्त ज्ञान हो। वे स्वतंत्र रहें लेकिन उसमें अनुशासन हो शिक्षा कर ना हो ताकि उन्हें सामाजिक न्याय की प्राप्ति हो सके।
- प्रताप वेलफेयर फाउंडेशन की संचालिका ममता सिंह कहती हैं कि महिलाओं के सशक्तिकरण की आवश्यकता इसलिए महसूस की जा रही है क्योंकि समाज में उनकी ऐसी स्थिति कुछ शुरू से ही रही है कि समाज में महिलाओं की स्थिति को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता पड़ रही है संविधान और सहायक कानून के माध्यम से इसमें बदलाव लाया जा सकता है । भारत के संविधान में महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा दिया गया है। इससे महिला शक्तिशाली बनती है जिससे वह अपने जीवन से जुड़े सभी फैसिलिटी स्वयं ले सकती हैं और परिवार समाज में अच्छे से रह सकती हैं। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण है। विश्व के सभी देशों में महिलाओं के विकास की ओर पहले से अधिक ध्यान दिया जा रहा है उनके सशक्तिकरण हेतु विभिन्न स्तरों पर कई योजनाएं व कार्यक्रमों को क्रियान्वित किया गया है।
- सरकारी बैंक में प्रबंधक के पद पर कार्यरत श्रीमती वंदना जुत्शी कार्यालय के कार्य में दक्षता के साथ-साथ योग शास्त्र के विभिन्न स्तरों के ज्ञान में भी प्रशिक्षित हैं ।यह महिला सशक्तिकरण की प्रबल समर्थक है एवं इस दिशा में विभिन्न मंचों से अपने विचार व्यक्त करती रहती हैं। इनका मत है कि सशक्तिकरण से नारी को एक स्पष्ट धरा मिलती है जिस पर वह आत्मनिर्भरता से खड़ी रह पाती हैं ।सपने देखने का साहस कर पाती है एवं इन सपनों को साकार भी कर पाती हैं सशक्तिकरण एक मजबूत आधार है ।जिसके द्वारा एक महिला को किसी भी सामाजिक रिश्ते जैसे पिता पति अथवा बेटे द्वारा प्रदत छड़ी की जरूरत नहीं महसूस होती है। सशक्तिकरण द्वारा महिला को विभिन्न क्षेत्रों जैसे विज्ञान अर्थशास्त्र वाणिज्य भूगोल साहित्य सूचना एवं प्रौद्योगिकी की अंतरिक्ष या वैमानिकी राजनीति व्यवसाय घर के भीतर या घर के बाहर उत्कृष्टता प्राप्त हो सकती है यह एक ऐसा यंत्र है। जिसके द्वारा एक महिला अपने संकुचित भावनात्मक दायरे से बाहर निकाल कर निर्णय ले पाती है ।सशक्तिकरण द्वारा एक महिला असीमित उपलब्धियां प्राप्त करने में सशक्त हो जाती है जिसकी वह हकदार है।
- वाॅयस अचीवमेंट अवार्ड से विभूषित युवा गायिका सौम्या वर्मा महिला सशक्तिकरण के लिए सदैव तत्पर से मुखर रही है एवं समाज में महिलाओं एवं पुरुषों की हर प्रकार से समानता की पक्षधर रही है इनका कहना है कि महिलाओं की वर्तमान स्थिति पुराने समय की तुलना में बहुत बेहतर हुई है और इस दिशा में निरंतर प्रगति भी हो रही है समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसमें महिलाओं की भागीदारी नहीं है एवं उनकी स्थिति विकास पथ पर निरंतर अग्रसर है समाज के उच्च एवं उच्च मध्यम वर्ग में महिलाएं पुरुषों के समक्ष देखी जा सकती हैं। निम्न वर्ग में भी स्थिति में कुछ सुधार हुआ है परंतु अभी और अधिक सुधार की आवश्यकता है। सीमित नहीं रहना चाहिए वरन संपूर्ण महिला समाज के सामूहिक विकास की आवश्यकता है संपूर्ण पुरुष वर्ग की मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है जब महिला पूर्ण सशक्त होगी तो संपूर्ण परिवार सशक्त होगा संपूर्ण समाज सशक्त होगा एवं इसके अंतिम प्रभाव स्वरूप संपूर्ण देश सशक्त होगा।